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गन्ने की आधुनिक खेती की सम्पूर्ण जानकारी

गन्ने की आधुनिक खेती की सम्पूर्ण जानकारी

भारत में गन्ने की खेती वैदिक काल से होती चली आ रही है। गन्ने का व्यावसायिक उपयोग होता है। इसलिये गन्ने की आधुनिक खेती को व्यावसायिक खेती कहा जाता है। गन्ने की खेत से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से एक लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है। गन्ने की खेती के बारे में कहा जाता है कि यह सुरक्षित खेती है क्योंकि गन्ने की खेती को विषम परिस्थितियां बिलकुल प्रभावित नहीं कर पातीं हैं। 

साल में  दो बार की जा सकती है गन्ने की खेती

भारत में गन्ने की फसल के लिए बुआई साल में दो बार की जा सकती है। इन दोनों फसलों को बसंतकालीन व शरदकालीन कहा जाता है। शरदकालीन  फसल के लिए गन्ने की बुआई 15 अक्टूबर तक की जाती हैजबकि बसंत कालीन गन्ने की फसल के लिए बुआई 15 फरवरी से लेकर 15 मार्च तक की जाती है। बसंत कालीन गन्ने की आधुनिक खेती के लिए बुआई धान की पछैती फसल की कटाई के बाद, तोरिया, आलू व मटर की फसलों की कटाई के बाद खाली हुए खेतों में की जा सकती है। 

गन्ने की खेती से होती है बड़ी कमाई

sugarcane farming 

 गन्ने की खेती बहुवर्र्षीय फसल है। एक बार बुआई करने के बाद कम से कम तीन बार फसल की कटाई की जा सकती है। यदि अच्छे प्रबंधन से खेती की जाये तो प्रतिवर्ष प्रति हेक्टेयर एक से डेढ़ लाख रुपये तक का मुनाफा कमाया जा सकता है। गन्ने की खेती से किसान भाइयों को मक्का-गेहूं, धान-गेहूं, सोयाबीन-गेहूं, दलहन-गेहूं के फसल चक्र से अधिक कमाई की जा सकती है। 

गन्ने की आधुनिक खेती के लिए आवश्यक मिट्टी

गन्ने की फसल के लिए सबसे अच्छी मिट्टी दोमट मिट्टी होती है। इसके अलावा गन्ने की खेती को भारी दोमट मिट्टी में अच्छी फसल ली जा सकती है। गन्ने की खेती क्षारीय,अमलीय, जलजमाव वाली जमीन में नहीं की जा सकती है। 

किस प्रकार करें खेती की तैयारी

धान, आलू, मटर, आदि फसलों से खाली हुए खेत को मिट्टी पलटने वाले हल से तीन चार बार जुताई करनी चाहिये। पुरानी फसलों के अवशेष व खरपतवार पूरी तरह से हटा देना चाहिये। बेहतर होगा कि हैरो से तीन बार जुताई करनी चाहिये। इसके बाद देशी हल से 5-6 बार जुताई करके खेत को अच्छी तरह से तैयार करना चाहिये। किसान भाइयों को इसके बाद खेत का निरीक्षण करना चाहिये यदि खेत सूखा हो तो पलेवा करना चाहिये। यह देखना चाहिये कि गन्ने की बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिये। 

बीज कैसे तैयार करें

गन्ने की फसल लेने के लिए अच्छे बीज को भी तैयार करना होता है। इसके लिए खेत में अच्छी तरह से खाद डालना चाहिये।  गन्ने के बीज बनाने के लिए गन्ना लेते वक्त इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिये कि गन्ने में कोई रोग नहीं हो और जिस खेत में बुआई करने जा रहे हों तो उसी खेत का पुराना गन्ना नहीं होना चाहिये। प्रत्येक खेत के लिए नये खेत के गन्ने से बने हुए बीज का इस्तेमाल करना चाहिये। गन्ने का केवल ऊपरी भाग यदि बीज का इस्तेमाल किया जाये तो बहुत अच्छा होता है।  ऊपरी भाग की खास बात यह है कि वह जल्द ही अंकुरित होता है।  गन्ने के तीन आंख वाले टुकड़ों को अलग-अलग काट लेना चाहिये। प्रति हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए इस तरह के 40 हजार टुकड़े चाहिये। बुआई करने से पहले गन्ने के बीज को कार्बनिक कवकनाशी से उपचार करना जरूरी होता है।  

गन्ने की आधुनिक खेती की बुआई का तरीका

किसान भाइयों को बसंत कालीन फसल के लिए गन्ने के बीज की दूरी 75 सेमी रखनी होती है जबकि शरदकालीन गन्ने के लिए बीज की दूरी 90 सेमी रखनी होती है। दोनों ही फसलों के लिए रिजन से 20 सेमी गहरी नालियां खोदी जानी चाहिये। फिर उर्वरक मिलाकर मिट्टी को नाली में डालना चाहिये। दीमक और तना •छेदक कीड़े से बचाव के लिए बुआई के पांच दिन बाद ग्राम बीएचसी का 1200-1300 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये। इस दवा को 50 लीटर पानी में घोलकर नालियों पर छिड़काव करके मिट्टी से बंद कर देना चाहिये। बुआई के बाद किसान भाइयों को लगातार गन्ने की खेती की निगरानी रखनी चाहिये। यदि पायरिला का असर दिखे और उसके अंडे दिख जायें तो किसी रसायन का प्रयोग करने से पहले किसी कीट विशेषज्ञ से राय ले लें। इसके अलावा यदि खड़ी फसल में दीपक लग गया हो तो 5 लीटर गामा बीएचसी 20 ईसी का प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में सिंचाई से समय इस्तेमाल करना चाहिये। 

सिंचाई प्रबंधन

बसंत कालीन गन्ने की खेती के लिए किसान भाइयों को विशेष रूप से सिंचाई पर ध्यान देना होता है। इस फसल के लिए कम से कम 6 बार सिंचाई करनी होती है। चार बार सिंचाई बरसात से पहले की जानी चाहिये और दो बाद सिंचाई बारिश के बाद की जानी चाहिये। तराई क्षेत्रों में तो केवल 2 या 3 सिंचाई ही पर्याप्त होती है। 

खरपतवार प्रबंधन

गन्ने की खेती में खरपतवार नियंत्रण के प्रबंधन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बुआई के बाद एक-एक महीने के अंतर में तीन बार निराई, गुड़ाई करनी चाहिये। हालांकि गन्ने की खेती में खरपतवार के नियंत्रण के लिए बुआई के तुरन्त बाद एट्राजिन और सेंकर को एक हजार लीटर पानी में प्रतिकिलो मिलाकर छिड़काव करने से खरपतवार नियंत्रण होता है लेकिन रसायनों के बल पर खरपतवार को पूरी तरह से नष्ट नहीं किया जा सकता है। 

रोगों की रोकथाम कैसे करें

किसान भाइयों को चाहिये गन्ने की खेती में रोगों की रोकथाम करने के विशेष इंतजाम करने चाहिये। जानकार लोगों का मानना है कि गन्ने की खेती में रोग बीज से ही लगते हैं। इसलिये गन्ने की खेती में लगने वाले रोगों की रोकथाम के लिए इस प्रकार से इंतजाम करना चाहिये।
  1. गन्ने की खेती की बुआई के लिए निरोगी, स्वस्थ और प्रमाणित बीज ही बोयें।
  2. गन्ने की बुआई से पहले बीज को ट्राईकोडर्मा 10 को प्रति लीटर पानी में मिलाकर घोल बनाएं और उससे बीज को उपचारित करें।
  3. बीज के लिए गन्ने को काटते समय ध्यान रखें और लाल और पीले रंग एवं गांठों की जड़ को निकाल दें। सूखे गन्ने को भी अलग कर लें।
  4. यदि किसी खेत में रोग लग जाये तो गन्ने की फसल के लिए 2-3 साल तक नहीं बोनी चाहिये।

उर्वरक और खाद का प्रबंधन कैसे करें

गन्ने की फसल लम्बी अवधि के लिए होती है। इसलिये खेत में उर्वरक और खाद का प्रबंधन भी अच्छा करना होता है। सबसे पहले खेत की अंतिम जुताई से पूर्व सड़ी गोबर व कम्पोस्ट की 20 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खाद डालनी चाहिये। इस खाद को खेत की मिट्टी से अच्छी तरह मिलाना चाहिये। बुआई से पहले 300 किलोग्राम नाइट्रोजन,, 500 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 60 किलोग्राम पोटाश को प्रति हेक्टेयर की दर से डालनी चाहिये। एसएसपी और पोटाश की पूरी मात्रा को बुआई करनी चाहिये। लेकिन नाइट्रोजन की पूरी मात्रा को तीन हिस्सों में समान रूप से बांटना चाहिये। किसान भाइयों को चाहिये कि नाइट्रोजन को बुआई के बाद 30 दिन बाद, 90 दिन के बाद और चार महीने के बाद खेत में सिंचाई करने से पहले डालना चाहिये। नाइट्रोजन के साथ नीम की खली भी मिलाकर खेत में डालने से किसान भाइयों को गन्ने की फसल में लगने वाले दीमक से भी सुरक्षा मिल सकती है। इसके अलावा बुआई के समय खेत में जिंक व आयरन की कमी को पूरा करने के लिए 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट तथा 50 किलोग्राम फेरस सल्फेट 3 वर्ष के अंतर से डालना चाहिये। 

गन्ने को गिरने से बचाने के उपाय करने चाहिये

गन्ने की लाइनों की दिशा पूर्व तथा पश्चिम की ओर रखें। गन्ने की गहरी बुआई करें। पौधा जब डेढ़ मीटर का हो जाये तब दो बार उसकी जड़ों में मिट्टी चढ़ाएं। गन्ने की बंधाई करें। यह बंधाई पत्ते से की जानी चाहिये लेकिन सारी पत्तियां एक जगह पर इकट्ठा न हों।

गन्ने के गुड़ की बढ़ती मांग : Ganne Ke Gud Ki Badhti Maang

गन्ने के गुड़ की बढ़ती मांग : Ganne Ke Gud Ki Badhti Maang

गन्ने की फसल किसानों के लिए बहुत ही उपयोगी होती है। गन्ने के गुड़ की बढ़ती मांग को देखते हुए किसान इस फसल को ज्यादा से ज्यादा उगाते है। गुड एक ठोस पदार्थ होता है। गुड़ को गन्ने के रस द्वारा प्राप्त किया जाता है। गन्ने की टहनियों द्वारा रस निकाल कर ,इसको आग में तपाया जाता है।जब यह अपना ठोस आकार प्राप्त कर लेते हैं, तब  हम इसे गुड़ के रूप का आकार देते हैं। गुड़  प्रकृति का सबसे मीठा पदार्थ होता है। गुड दिखने में हल्के पीले रंग से लेकर भूरे रंग का दिखाई देता है।

गन्ने के गुड़ की बढ़ती मांग (Growing demand for sugarcane jaggery)

गन्ने के गुड़ के ढेले और चूर्ण कटोरों में [ sugarcane jaggery (gud) in powder, granules and cube form ] किसानों द्वारा प्राप्त की हुई जानकारियों से यह पता चला है।कि किसानों द्वारा उगाई जाने वाली गन्ने गुड़ की फसल में लागत से ज्यादा का मुनाफा प्राप्त होता है।इस फ़सल में जितनी लागत नहीं लगती उससे कई गुना किसान इस फसल से कमाई कर लेता है।जो साल भर उसके लिए बहुत ही लाभदायक होते है।

भारत में गन्ने की खेती करने वाले राज्य ( sugarcane growing states in india)

भारत एक उपजाऊ भूमि है जहां पर गन्ने की फसल को निम्न राज्यों में उगाया जाता है यह राज्य कुछ इस प्रकार है जैसे : उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तरांचल, बिहार ये वो राज्य हैं जहां पर गन्ने की पैदावार होती है।गन्ने की फसल को उत्पादन करने वाले ये मूल राज्य हैं।

गन्ना कहां पाया जाता है (where is sugarcane found)

गन्ना सबसे ज्यादा ब्राजील में पाया जाता है गन्ने की पैदावार ब्राजील में बहुत ही ज्यादा मात्रा में होती है।भारत विश्व में दूसरे नंबर पर आता है  गन्ने की पैदावार के लिए।लोगों को रोजगार देने की दृष्टि से गन्ना बहुत ही मुख्य भूमिका निभाता है।गन्ने की फसल से भारी मात्रा में लोगों को रोजगार प्राप्त होता है तथा विदेशी मुद्रा की भी प्राप्ति कर सकते हैं।

गन्ने की खेती का महीना: (Sugarcane Cultivation Month)

कृषि विशेषज्ञों द्वारा गन्ने की फसल का सबसे अच्छा और उपयोगी महीना अक्टूबर-नवंबर से लेकर फरवरी, मार्च तक के बीच का होता है।इस महीने आप गन्ने की फसल की बुवाई कर सकते हैं और इस फसल को उगाने का यह सबसे अच्छा समय है।

गन्ने की फसल की बुवाई कर देने के बाद कटाई कितने वर्षों बाद की जाती है( After how many years after the sowing of sugarcane crop is harvested)

गुड़ के लिए गन्ने की कटाई [ ganne ki katai ] फसल की बुवाई करने के बाद, किसान  इस फसल से लगभग 3 वर्षों तक फायदा उठा सकते हैं। गन्ने की फसल द्वारा पहले वर्ष दूसरे व तीसरे वर्ष में आप गन्ने की अच्छी प्राप्ति कर सकते हैं। लेकिन उसके बाद यदि आप उसी फसल से गन्ने की उत्पत्ति की उम्मीद करते हैं। तो यह आपके लिए  हानिकारक हो सकता है।  इसीलिए चौथे वर्ष में इसकी कटाई करना आवश्यक होता है। कटाई के बाद अब पुनः बीज डाल कर गन्ने की अच्छी फसल का लाभ उठा सकते हैं।

गन्ने की फसल तैयार करने में कितना समय लगता हैं( How long does it take to harvest sugarcane)

अच्छी बीज का उच्चारण कर गन्ने की खेती करने के लिए उपजाऊ जमीन में गन्ने की फसल में करीबन 8 से 10 महीने तक का समय लगता है।इन महीनों के उपरांत किसान गन्ने की अच्छी फसल का आनंद लेते हैं।

गन्ने की फसल में कौन सी खाद डालते हैं( Which fertilizers are used in sugarcane crop)

ganna ke liye khad गन्ने की फसल की बुवाई से पहले किसान इस फसल में सड़ी गोबर की खाद वह कंपोस्ट फैलाकर जुताई करते हैं। मिट्टियों में इन खादो  को बराबर मात्रा में मिलाकर फसल की बुवाई की जाती है। तथा किसान गन्ने की फसल में डीएपी , यूरिया ,सल्फर, म्यूरेट का भी इस्तेमाल करते है।

गन्ने की फसल में  पोटाश कब डालते हैं( When to add potash to sugarcane crop)

किसान खेती के बाद सिंचाई के 2 या 3 दिन बाद , 50 से 60 दिन के बीच के समय में यूरिया की 1/3 भाग म्यूरेट पोटाश खेतों में डाला जाता है।उसके बाद करीब 80 से 90 दिन की सिंचाई करने के उपरांत यूरिया की बाकी और बची मात्रा को खेत में डाल दिया जाता है।

गन्ना उत्पादन में भारत का विश्व में कौन सा स्थान है (What is the rank of India in the world in sugarcane production)

गन्ना उत्पादन में भारत विश्व में दूसरे नंबर पर आता है। भारत सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक करने वाला देश माना जाता है।इसका पूर्ण श्रय  किसानों को जाता है जिन्होंने अपनी मेहनत और लगन से भारत को विश्व का गन्ना उत्पादन का दूसरा राज्य बनाया है।

गन्ने में पाए जाने वाले पोषक तत्व ( nutrients found in sugarcane)

गन्ने में बहुत सारे पोषक तत्व मौजूद होते हैं जो हमारे शरीर को बहुत सारे फायदे पहुंचाते हैं। गर्मियों में गन्ने के रस को काफी पसंद किया जाता है। शरीर को फुर्तीला चुस्त बनाने के लिए लोग गर्मियों के मौसम में ज्यादा से ज्यादा गन्ने के रस का ही सेवन करते हैं। जिसको पीने से हमारा शरीर काम करने में सक्षम रहें तथा गर्मी के तापमान से हमारे शरीर की रक्षा करें। गन्ना पोषक तत्वों से भरपूर होता है तथा इसमें कैल्शियम  क्रोमियम ,मैग्नीशियम, फास्फोरस कोबाल्ट ,मैग्नीज ,जिंक पोटेशियम आदि तत्व पाए जाते हैं। इसके अलावा इसमें मौजूद आयरन विटामिन ए , बी, सी भी मौजूद होते है। गन्ने में काफी मात्रा में फाइबर,प्रोटीन ,कॉम्प्लेक्स  की मात्रा पाई जाती है गन्ना इन पोषक तत्वों से भरपूर है।

गन्ने की फसल में फिप्रोनिल इस्तेमाल ( Fipronil use in sugarcane crop)

fipronil गन्ने की अच्छी फसल के लिए किसान खेतों में फिप्रोनिल का इस्तेमाल करते हैं किसान खेत में गोबर की खाद मिलाने से पहले कीटाणु नाशक जीवाणुओं से खेत को बचाने के लिए फिप्रोनिल 0.3% तथा 8 - 10 किलोग्राम मिट्टी के साथ मिलाकर जड़ में विकसित करते हैं।जो गन्ने बड़े होते हैं उन में क्लोरोपायरीफॉस 20% तथा 2 लीटर प्रति 400 लीटर पानी मिलाकर जड़ में डालते हैं।

गन्ने की फसल में जिबरेलिक एसिड का इस्तेमाल ( Use of gibberellic acid in sugarcane crop)

गन्ने की फसल में प्रयोग आने वाला जिबरेलिक एसिड ,जिबरेलिक एसिड यह एक वृद्धि हार्मोन एसिड है।जिसके प्रयोग से आप गन्ने की भरपूर फसल की पैदावार कर सकते हैं। किसान इस एसिड द्वारा भारी मात्रा में गन्ने की पैदावार करते हैं।कभी-कभी गन्ने की ज्यादा पैदावार के लिए किसान इथेल का भी प्रयोग करते है। इथेल100पी पी एम में गन्ने के छोटे छोटे टुकड़े  डूबा कर रात भर रखने के बाद इसकी बुवाई से जल्दी कलियों की संख्या निकलने लगती है।

गन्ने की फसल में जिंक डालने के फायदे( Benefits of adding zinc to sugarcane crop)

जिंक सल्फेट को ऊसर सुधार के नाम से भी जाना जाता है।इसके प्रयोग से खेतों में भरपूर मात्रा में उत्पादन होता है। फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए जिंक बहुत ही उपयोगी है।जिंक के इस्तेमाल से खेतों की मिट्टियां भुरभुरी होती हैं तथा जिंक खेतों की जड़ों को मजबूती अता करता है।

गन्ने की फसल की प्रजातियां ( varieties of sugarcane)

ganne ki variety आंकड़ों के अनुसार गन्ने की फसल की प्रजातियां लगभग 96279 दर बोई जाती है। गन्ने की यह प्रजातियां किसानों द्वारा बोई जाने वाली गन्ने की फसलें हैं। हमारी इस पोस्ट के जरिए आपने गन्ने की बढ़ती मांग के विषय में पूर्ण रूप से जानकारी प्राप्त कर ली होगी।जिसके अंतर्गत आपने और भी तरह के गन्ने से संबंधित सवालों के उत्तर हासिल कर लिए होंगे। यदि आप हमारी इस पोस्ट द्वारा दी गई जानकारियों से संतुष्ट है तो ज्यादा से ज्यादा हमारी इस पोस्ट को सोशल मीडिया या अन्य जगहों पर शेयर करें।
गन्ने की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

गन्ने की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

गन्ने की खेती से किसान काफी अच्छा मुनाफा कमाते हैं। भारत में गन्ने का काफी उत्पादन काफी बड़े पैमाने पर किया जाता है। गन्ना के इस्तेमाल से बहुत सारे उत्पाद निर्मित होते हैं। गन्ना से चीनी निर्मित की जाती है। भारत में गन्ने की अत्यधिक पैदावार होने के चलते यहां से चीनी का भी अच्छा खासा निर्यात किया जाता है। आज हम आपको इस लेख में गन्ने की खेती से जुड़ी संपूर्ण जानकारी देने वाले हैं।

जमीन का चयन और उसकी तैयारी

गन्ना के लिए बेहतर जल निकासी वाली दोमट जमीन सबसे उपयुक्त होती है। ग्रीष्म में मृदा पलटने वाले हल सें दो बार आड़ी एवं खड़ी जुताई करें। अक्टूबर माह के पहले सप्ताह में बखर से जुताई कर मृदा को भुरभुरी कर लें और पाटा चलाकर एकसार कर लें। रिजर की मदद से 3 फुट के फासले पर नालियां निर्मित कर लें। परंतु, वसंत ऋतु में रोपित किए जाने वाले ( फरवरी - मार्च ) गन्ने के लिए नालियों का फासला 2 फुट रखें। आखिरी बखरनी के दौरान जमीन को लिंडेन 2% पूर्ण 10 किलो प्रति एकड़ से उपचारित जरूर करें।

गन्ने की बिजाई हेतु उपयुक्त समय

गन्ने की अधिक पैदावार लेने के लिए सबसे उपयुक्त वक्त अक्टूबर - नवम्बर है । बसंत कालीन गन्ना फरवरी-मार्च में लगाना चाहिए।

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गन्ने के साथ अन्तवर्तीय फसल

अक्टूबर नवंबर में 90 से.मी. पर निकाली गई गरेड़ों में गन्ने की फसल की बिजाई की जाती है। साथ ही, मेंढ़ों की दोनों तरफ आलू, राजमा, प्याज, लहसुन, या सीधी बढ़ने वाली मटर अन्तवर्तीय फसल के तौर पर लगाना उपयुक्त माना जाता है। इससे गन्ने की फसल को किसी प्रकार की क्षति नहीं होती। इससे 6000 से 10000 रूपये का अतिरिक्त मुनाफा होगा। वसंत ऋतु में गरेडों की मेड़ों के दोनों तरफ मूंग, उड़द लगाना काफी फायदेमंद है। इससे 2000 से 2800 रूपये प्रति एकड़ अतिरिक्त मुनाफा मिल जाता है।

गन्ने की खेती के लिए उर्वरक

गन्ने में 300 कि. नाइट्रोजन (650 किलो यूरिया), 80 किलो फास्फोरस, (500 कि0 सुपरफास्फेट) एवं 90 किलो पोटाश (150 कि.ग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश) प्रति हेक्टर देवें। फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बिजाई के पहले गरेडों में देनी चाहिए। नाइट्रोजन की मात्रा अक्टूबर में बोई जाने वाली फसल के लिए संभागों में विभाजित कर अंकुरण के दौरान, कल्ले निकलते वक्त हल्की मृदा चढ़ाते वक्त और भारी मृदा चढ़ाने के दौरान दें। फरवरी माह में बिजाई की गई फसल में तीन समान हिस्सों में अंकुरण के दौरान हल्की मृदा चढ़ाते समय एवं भारी मिट्टी चढ़ाते समय दें। गन्ने की फसल में नाइट्रोजन की मात्रा की पूर्ति गोबर की खाद अथवा हरी खाद से करना फायदेमंद होता है।

निराई गुड़ाई

बोनी के करीब 4 माह तक खरपतवारों का नियंत्रण जरूरी होता है। इसके लिए 3-4 बार निंदाई करनी चाहिए। रासायनिक नियंत्रण हेतु अट्राजिन 160 ग्राम प्रति एकड़ 325 लीटर पानी में घोलकर अंकुरण के पहले छिड़काव करें। उसके पश्चात ऊगे खरपतवारों के लिए 2-4 डी सोडियम साल्ट 400 ग्राम प्रति एकड़ 325 ली पानी में घोलकर छिड़काव करें। छिड़काव के दौरान खेत में नमी होनी काफी जरुरी है।

गन्ने की खेती में मिट्टी चढ़ाना

गन्ने को गिरने से बचाने के लिए रीजर की मदद से मृदा चढ़ानी चाहिए। अक्टूबर-नवम्बर में बोई गई फसल में प्रथम मिट्टी फरवरी - मार्च में और आखिरी मिट्टी मई माह में चढ़ानी चाहिए । कल्ले फूटने से पूर्व मृदा नहीं चढ़ानी चाहिए।

गन्ने की सिंचाई

शीतकाल में 15 दिन के अंतराल पर और गर्मी में 8-10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें। सिंचाई सर्पाकार विधि से करें। सिंचाई की मात्रा कम करने के लिए गरेड़ों में गन्ने की सूखी पत्तियों की 4-6 मोटी बिछावन बिछा दें। ग्रीष्मकाल में पानी की मात्रा कम होने पर एक गरेड़ छोड़कर सिंचाई करें।

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गन्ने की पेंड़ी काफी फायदेमंद होती है

किसान गन्ने की पेड़ी फसल पर खास ध्यान नहीं देते, फलस्वरूप इसकी पैदावार कम अर्जित होती है। अगर पेड़ी फसल में भी योजनाबध्द ढंग से कृषि काम किये जाएं तो इसकी पैदावार भी मुख्य फसल के समतुल्य अर्जित की जा सकती है। पेड़ी फसल से ज्यादा पैदावार लेने के लिए अनुशंसित कृषि माला अपनाना चाहिए। मुख्य गन्ना फसल के उपरांत बीज टुकड़ों से ही दोबारा पौधे विकसित होते हैं, जिससे दूसरे साल फसल अर्जित होती है। इसी तरह तीसरे वर्ष भी फसल प्राप्त की जा सकती है। इसके पश्चात पेड़ी फसल लेना फायदेमंद नहीं होता है। यहां यह उल्लेखनीय है, कि कीट रहित मुख्य फसल से ही भविष्य की पेड़ी फसल से ज्यादा उत्पादन लिया जा सकता है। चूंकि पेड़ी फसल बिना बीज की व्यवस्था और बिना विशेष खेत की तैयारी के ही अर्जित होती है। इसलिए इसमें खर्चा कम आता है। साथ ही, पेड़ी की फसल विशेष फसल की अपेक्षा शीघ्र पक कर तैयार हो जाती है। इसके गन्ने के रस में मिठास भी काफी ज्यादा होती है।

गन्ने की किस्में

अगर किसान नया बीजारोपण कर रहे हो एवं आगे पेड़ी रखने का प्लान हो तो को. 1305 को. 7314, को.7318 , को. 775, को. 1148,को. 1307, को. 1287 इत्यादि अच्छी पेड़ी फसल देने वाली किस्मों का स्वस्थ और उपचारित बीज लगाऐं।

मुख्य फसल की कटाई और सफाई

मुख्य फसल को फरवरी-मार्च में काटें फरवरी पूर्व कटाई करने से कम तापमान होने की वजह फुटाव कम होंगे। पेड़ी फसल में कल्ले कम अर्जित होंगें। कटाई करने के दौरान गन्ने को भूमि की सतह के करीब से काटा जाना चाहिए। इससे स्वस्थ और ज्यादा कल्ले अर्जित होंगे। ऊंचाई से काटने से ठूंठ पर कीट व्याधि की आरंभिक अवस्था में प्रकोप की आशंका बढ़ जाती है। बतादें, कि जड़े भी ऊपर से निकलती है, जो कि बाद में गन्ने के वजन को संभाल नहीं पाती। खेत की सफाई के लिए जीवांश खाद बनाने के लिए पिछली फसल की पत्तियों व अवशेषों को कम्पोस्ट गड्डे में डालें।

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कटी सतह पर उपचार करें

कटे हुए ठूंठों पर कार्बेन्डाइजिम 550 ग्राम 250 ली. जल में घोल कर झारे की मदद से कटी हुई सतह पर छिड़कें। इससे कीटव्याधि संक्रमण से बचाव होगा।

कम उत्पादन की क्या वजह होती है

खेत में खाली भूमि का रह जाना ही कम उत्पादन की वजह है। अत: जो भूमि 1 फुट से ज्यादा खाली हो। वहां पर नवीन गन्ने के उपचारित टुकड़े लगाकर सिंचाई कर दें। गरेड़ो को भी तोड़ें सिंचाई के उपरांत बतर आने पर गरेड़ों को बाजू से हल चलाकर तोड़ें, जिससे पुरानी जड़े टूटेंगी। साथ ही, नई जड़ें दी गई खाद का भरपूर इस्तेमाल करेंगी।

गन्ने की खेती में भरपूर खाद दें

बीज फसल की भांति ही जड़ फसल में भी नत्रजन 120 कि., स्फुर 32 कि. तथा पोटाश 24 कि. प्रति एकड़ दर से देना चाहिए। स्फुर एवं पोटाश की भरपूर मात्रा और नत्रजन की ज्यादा मात्रा गरेड़ तोडते वक्त हल की मदद से नाली में देनी चाहिए। बाकी बची आधी नत्रजन की मात्रा अंतिम मृदा चढ़ाते वक्त दें। नाली में खाद देने के उपरांत रिजर अथवा देसी हल में पाटा बांधकर हल्की मिट्टी चढ़ायें।

किसान सूखी पत्तियां जलाने की जगह बिछायें

प्राय: किसान सूखी पत्तियों को खेत में जला देते है। उक्त सूखी पत्तियों को जलाये नहीं बल्कि उन्हे गरड़ों में बिछा दें। इससे पानी की भाप बनकर उड़ने में कमी होगी। सूखी पत्तियां बिछाने के बाद 10 कि.ग्रा. बी.एर्च.सी 10% चूर्ण प्रति एकड़ का भुरकाव करें। बाकी काम जब पौधे 1.5 मी. ऊचाई के हो जाएं उस वक्त गन्ना बंधाई का काम करें। उपरोक्त कम लागत वाले उपाय करने से जड़ी फसल का उत्पादन भी बीज फसल की उत्पादन के समतुल्य ली जा सकती है।